The Journalist Post: पिछले करीब 10 से 15 साल की बात करें तो जालंधर नगर निगम जैसे सरकारी विभाग का सिस्टम खराब-दर-खराब होता चला जा रहा था। पहले पहल तो जालंधर निगम जैसे संस्थानों में ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच नैक्सस ही काम किया करता था परंतु उसके बाद जालंधर निगम के बिल्डिंग विभाग ने भ्रष्टाचार के तमाम रिकार्ड मात कर दिए और यह विभाग निगम का सबसे मलाईदार महकमा कहलवाया जाने लगा। बी. एंड आर. तथा बिल्डिंग विभाग के भ्रष्टाचार को देखते हुए निगम के बाकी विभागों में भी रिश्वतखोरी इतनी हावी हो गई कि आज के जमाने में तो यह सब लीगल-सा दिखने लगा था और पैसों के आदान-प्रदान को लोग ना तो ज्यादा गंभीरता से ले रहे थे, न ही इस भ्रष्टाचार की ज्यादा शिकायतें हो रही थी और पैसे देने तथा लेने वाले पक्ष यह काम खुलकर करने लगे थे। और तो और, भ्रष्टाचार के इस जाल में निगम के छोटे-छोटे विभाग जैसे तहबाजारी, विज्ञापन, लीगल शाखा, लाइसेंस ब्रांच इत्यादि भी लिप्त हो गए थे। निगम के इस सारे भ्रष्टाचार को न केवल राजनेताओं की शह थी बल्कि चंडीगढ़ बैठे अधिकारियों ने भी भ्रष्टाचार बाबत आई शिकायतों पर ध्यान देना बंद कर रखा था। विजिलेंस ब्यूरो की बात करें तो इस विभाग के जिम्मे भ्रष्टाचार को रोकने का काम है परंतु विजिलेंस ने भी करीब 15 साल चुप्पी धारण किए रखी और अब जाकर ब्यूरो ने जालंधर निगम के भ्रष्ट कर्मचारियों को दबोचने का काम शुरू किया है।
इससे पहले साल 2005-2006 में नगर निगम के सुपरिटेंडेंट अमनदीप पर विजिलेंस ने शिकंजा कसा था और उसे रंगे हाथ गिरफ्तार करने के लिए निगम परिसर में छापेमारी की थी परंतु सुपरिटेंडेंट अमनदीप किसी तरह विजिलेंस के चंगुल से छूटकर भाग खड़ा हुआ था। तब एक नेताजी उसे अपने स्कूटर पर बिठाकर भगा ले जाने में कामयाब हो गए थे। उस समय सुरिंदर महे मेयर की कुर्सी पर विराजमान थे। उसके बाद जब राकेश राठौर, सुनील ज्योति और जगदीश राजा मेयर बने, तब विजिलेंस ब्यूरो ने एक बार भी जालंधर निगम में छापेमारी करके किसी भ्रष्ट कर्मचारी को रंगे हाथ नहीं पकड़ा था। केवल अवैध कालोनियों, बिल्डिंगों इत्यादि की जांच के लिए विजिलेंस ने कई बार निगम आकर रिकॉर्ड की छानबीन अवश्य की परंतु उस मामले में भी कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया। अब विजिलेंस ब्यूरो ने सक्रिय होकर जिस प्रकार निगम के भ्रष्ट कर्मचारियों को पकड़ने का अभियान शुरू कर रखा है, उससे इस सरकारी संस्थान में दहशत-सी व्याप्त हो गई है और अब खुलकर चलने वाला भ्रष्टाचार लुकाछिपी के दायरे में आ सकता है।
15 दिन में 3 बार हो गई निगम पर विजिलेंस की कार्रवाई
पिछले 15 साल में जिस विजिलेंस ने जालंधर निगम पर कोई कार्रवाई नहीं की, उसने इन 15 दिनों में 3 बार जालंधर निगम के कर्मचारियों पर दबिश दी। सबसे पहले रामा मंडी के एक आर्किटेक्ट को दबोचा गया जिसके साथ ही एक बिल्डिंग इंस्पेक्टर सुखविंदर को भी गिरफ्तार करके 60 हजार रुपए की रिश्वतखोरी का खुलासा हुआ। पिछले सप्ताह विजिलेंस ब्यूरो की टीम ने शाम के समय निगम की बेसमैंट में छापेमारी करके एक रिटायर्ड महिला को रंगे हाथों पकड़ने का प्लान बनाया परंतु वह विजिलेंस से भी चालाक निकली और न केवल बिछाए गए जाल को तोड़कर भाग निकली बल्कि शिकायतकर्त्ता के 10 हजार रुपए भी उसी के पास चले गए जिन पर रंग तक लगा हुआ था। गत रात्रि बाठ कैसल के संचालकों की शिकायत पर विजिलेंस ब्यूरो की फ्लाइंग स्क्वायड टीम ने दूसरे शहर से आकर जालंधर निगम में ए.टी.पी. रहे रवि पंकज शर्मा को रंगे हाथ 8 लाख की रिश्वत के साथ गिरफ्तार किया जिसके साथ अरविंद मिश्रा और कुणाल कोहली को भी पकड़ लिया गया।
बाहरी लोग भी खराब कर रहे हैं निगम की इमेज, नए-नए नैटवर्क बने
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नगर निगम के कई कर्मचारी और अधिकारी अपने वेतन से संतुष्ट नहीं और ऊपरी कमाई भी चाहते हैं परंतु यह भी एक तथ्य है कि नगर निगम की इमेज को बाहरी लोग भी खराब कर रहे हैं। जालंधर निगम के बिल्डिंग विभाग में बाहरी लोगों और अफसरों के बीच कई नैटवर्क काम कर रहे हैं। निगम में चंद शिकायतकर्त्ता ऐसे हैं जो ज्यादातर अफसरों के सम्पर्क में होने के साथ-साथ उन्हें हिस्सा पत्ती भी पहुंचाते हैं। कई मामलों में तो निगम कर्मचारी ही शिकायतकर्त्ताओं को अनौपचारिक रूप से सारी सूचनाएं उपलब्ध करवा देते हैं और फिर शिकायत के बाद संबंधित पक्ष को शिकायतकर्त्ता से सैटिंग करने हेतु भी निगम स्टाफ द्वारा ही कहा जाता है। कई मामलों में तो निगम के नोटिसों तक पर शिकायतकर्त्ता का नाम लिख दिया जाता है। पहले पहले यह काम आर.टी.आई. के माध्यम से हुआ करता था परंतु उसके बाद शिकायतों के माध्यम से खुली ब्लैकमेलिंग भी होने लगी।