यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे भारतीय कुश्ती महासंघ यानी WFI के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह अपने काम के तरीकों को लेकर भी विवादों में रहे हैं। WFI के ऐसे कई अधिकारियों ने दावा किया है कि सिंह के खिलाफ खड़े होने पर उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा। इतना ही नहीं उनपर परिवार के सदस्यों को भी पद बांटने के आरोप लगते रहे हैं।
कुश्ती महासंघ की कई प्रदेश इकाइयां सिंह पर सवाल उठाती रही हैं। बिहार रेसलिंग एसोसिएशन (BWA) के पूर्व सचिव और पहलवान रहे कामेश्वर सिंह कहते हैं, ‘महासंघ में सिर्फ उनकी ही चलती थी। उन्होंने अपने खुद के नियम बना रखे थे और उनका पालन करना बहुत जरूरी था, नहीं तो आपको भारी कीमत चुकानी पड़ती थी।’ सिंह की तरफ से बाहर किए जाने से पहले वह 8 सालों तक WFI के संयुक्त सचिव भी रहे थे।
सिंह की तरफ से उनके दामाद विशाल सिंह को BWA का अध्यक्ष बनाने की मांग उठी, लेकिन प्रदेश इकाई ने इससे इनकार कर दिया। कामेश्वर बताते हैं कि BWA को 2018 में भंग कर दिया और नए गठन में विशाल को अध्यक्ष और उनके सहयोगी विनय कुमार सिंह को सचिव बनाया गया। उन्होंने बताया कि बिहार के अलावा भी कई राज्यों के साथ ऐसा बर्ताव हुआ। उन्होंने कहा कि चुनाव महज औपचारिकता हो गए थे।
पूर्वोत्तर में भी असर
त्रिपुरा रेसलिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष रूपक देब राय कहते हैं, ‘वह WFI को अपनी मर्जी से चलाते थे। वह 2015 चुनाव में हमारे एसोसिएशन के लिए अपने बेटे के नाम के लिए मुझपर दबाव डाल रहे थे, लेकिन मैंने इनकार कर दिया। जब मैं चुनाव के लिए गया, तो देखा कि हमारे महासचिव के नाम की जगह लिस्ट में उनके बेटे का नाम लिखा हुआ था।’
उन्होंने कहा, ‘उसी दिन से WFI ने त्रिपुरा को राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं और WFI की बैठकों के लिए न्योता देना बंद कर दिया। हमें अलग कर दिया और प्रदेश के पहलवान को खामियाजा भुगतना पड़ा। त्रिपुरा में 350 पहलवान हैं, लेकिन स्पोर्ट्स में उनका कोई भविष्य नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘वह बहुत ताकतवर हैं। हमारे पास उनके खिलाफ केस लड़ने के साधन नहीं हैं।’
असम रेसलिंग एसोसिएशन के उज्जल बरुआ ने कहा, ‘बृज भूषण असम में नया एसोसिएशन बनाना चाहते थे, लेकिन हमने ऐसा नहीं होने दिया। बिहार, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्य हैं, जहां उन्होंने निर्वाचित इकाइयों को खत्म करने की कोशिश की और चुनावी फायदे के लिए अपने रिश्तेदारों को जग दिलाने की कोशिश की।’
बड़े राज्यों पर नजर
अधिकारी बताते हैं कि तीसरे कार्यकाल में सिंह हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों की ओर निकल गए। 30 जून को कुशासन का हवाला देते हुए तीनों राज्यों की इकाइयों को भंग कर दिया गया। खास बात है कि यह बैठक के एजेंडा में भी शामिल नहीं था। एक अधिकारी ने कहा, ‘वह जिला इकाइयों को हमारे खिलाफ झूठी शिकायतें करने के लिए कहते थे और उसके जरिए हमारी मान्यता रद्द कर देते थे। कोई नोटिस नहीं दिया गया। यहां तक कि शिकायतें भी नहीं दिखाईं गईं।’
सबसे बड़े हब हरियाणा से उठे विरोध के सुर
हरियाणा की तरफ से भी आरोप लगाए गए कि सिंह प्रदेश इकाई पर नियंत्रण जमाने की कोशिश कर रहे हैं। हरियाणा रेसलिंग एसोसिएशन महासचिव राज कुमार हुड्डा ने कहा, ‘उन्होंने मुझे कहा कि हरियाणा ने हाल के समय में नेशनल का आयोजन नहीं किया और WFI अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगा। मैंने उन्हें इसकी चुनौती दे दी। हम रेसलिंग मैट्स बांटते हैं, अखाड़ों को रुपये और जिम के उपकरण देते हैं। उन्होंने खेल के विकास के लिए 12 सालों में क्या किया है?’
हुड्डा ने कहा, ‘यहां तक कि उनके खुद के राज्य उत्तर प्रदेश में हालात पहले से ज्यादा खराब हैं। हरियाणा के माता-पिता और लड़के-लड़कियों की कड़ी मेहनत के चलते भारत में रेसलिंग का विकास हुआ, बृज भूषण की वजह से नहीं।’
सफाई
WFI के पूर्व महासचिव वीएन प्रसूद इस तरह के आरोपों का खंडन करते हैं। उनका कहना है कि सिंह के कार्यकाल में WFI के चुनावों में पूरे नियमों का पालन किया गया। असम को लेकर प्रसूद ने कहा कि राज्य को SAI सेंटर के जरिए प्रतियोगिता में शामिल होने की अनुमति दी गई थी।